...तो हृदय, कैंसर, फेफड़े के मरीजों को नहीं भटकना होगा इलाज के लिए

...तो हृदय, कैंसर, फेफड़े के मरीजों को नहीं भटकना होगा इलाज के लिए

सेहतराग टीम

अगर सरकार ने देश के नीति आयोग की सिफारिश को माना तो कई गैर संक्रामक गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए लोगों को अपने जिले से बाहर जाने और निजी अस्‍पतालों में अपनी गाढ़ी कमाई लुटाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे देश में आयुष्‍मान भारत योजना के जरिये स्‍वास्‍थ्‍य बीमा की पहुंच करीब 10 करोड़ घरों तक पहुंचाने में जुटी सरकार ने अब आम लोगों की पहुंच निजी अस्‍पतालों तक भी कर दी है मगर अब भी गरीबों के लिए निजी अस्‍पताल दूसरे लोक की ही जगह हैं जहां उनके साथ किसी अजूबे की तरह ही व्‍यवहार किया जाता है।

ऐसे में नीति आयोग ने गैर-संक्रामक बीमारियों के इलाज के लिए देश के जिला अस्पतालों में यथोचित लागत पर अतिरिक्त ढांचागत सुविधा स्थापित करने को लेकर सार्वजनिक निजी भागीदारी का सुझाव दिया है।

सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत राज्य सरकारों द्वारा मौजूदा जिला अस्पतालों में हृदय, कैंसर और फेफड़ा संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए सुविधा स्थापित करने को लेकर निजी क्षेत्र को जगह उपलब्ध कराने का सुझाव है। 

गैर-संक्रामक बीमारियों के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को लेकर दिशानिर्देश जारी करते हुए नीति आयोग सदस्य वी.के. पॉल ने बुधवार को कहा कि पीपीपी माडल के तहत इलाज की लागत वही होगी जो आयुष्मान भारत के अंतर्गत जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) के तहत होगी।

दिशानिर्देश के अनुसार निजी भागीदार सुविधाओं को उन्नत बनाने, निर्माण और मानव संसाधन की तैनाती में निवेश करेंगे। दिशानिर्देश दस्तावेज के अनुसार, ‘ऐसी उम्मीद है कि गैर-संक्रामक बीमारी (एनसीडी) के इलाज की सुविधा जिला अस्पतालों में होगी और ये सुविधाएं जिला स्तर पर सरकारी अस्पतालों में उक्त बीमारियों से जुड़ी सेवाओं तक पहुंच बेहतर बनाएगी।’ 

इसके अनुसार, ‘एनसीडी इलाज की सुविधा से जुड़ी सभी सेवाएं एकल इकाई करेगी। यह ट्रस्ट, कंपनी, समूह आदि हो सकते हैं।’ दिशानिर्देश के अनुसार पीपीपी माडल एनसीडी के लिये विशेषीकृत सेवाएं उपलब्ध कराएंगे। 
पॉल ने कहा कि भारत को और निवेश की जरूरत है क्योंकि बेहतर इलाज की सुविधा की आपूर्ति के मसले हैं। उन्होंने कहा, ‘हम जांचे-परखे मॉडल पर भरोसा कर रहे हैं और उसे एनसीडी में लागू कर रहे हैं जिसकी लंबे समय से उपेक्षा की गयी है।’ 

इस मौके पर नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में निजी भागीदारी से समान वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही वैश्विक स्तर पर बुनियादी ढांचा, विशेषज्ञ उपलब्ध कराने में मददगार होगा।

दस्तावेज में कहा गया है कि हालांकि जन्म के समय जीवन प्रत्याशा जैसे मामलों में काफी सुधार हुए हैं लेकिन गैर-संक्रामक बीमारियां मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण है। इसका देश में कुल बीमारियों में 55 प्रतिशत तथा मृत्यु में 62 प्रतिशत से अधिक योगदान है।

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